Sleepy Eyes From Lockdown…. #निद्राएक्सपिरियेंसस्यशार्टपुराणम्वाचयामि

आकृति विज्ञा ‘अर्पण’, असिस्टेंट ब्यूरो चीफ-ICN U.P.
घर एकदम साहित्यिक आनंद का श्रवणीय अखाड़ा हो गया है।
रेगुलरिटी और अरेगुलरिटी (बोले तो इररेगुलरिटी ) की खतरनाक मिक्सिंग फिरकी ले रही है।
एक तो ये खगोलशास्त्र उफ्फ!
विदेशों की रात और यहां की सुबह,यहां की सुबह विदेशों की रात। ऊपर से आजकल पनपी मेरी निशा जागरण साधना।कभी दिन में सो लेती हूँ तो रात को अपनी ही वैचारिकी के लिये पहरा देना पड़ता है।जू मैप पर टुकुर टुकुर करती आँखे कभी भी झपक जाती हैं ।
सुबह मुझे जगाने के लिये प्रात: रचनायें भी रची जाती हैं।
जैसे कुंभकर्ण के लिये ख़ूब प्रबंध हुये थे।
दीदी : जागहु अब तो देवि भवानी
 रोटी कैसे पकीहें कल्याणी
छोटकी: टांय टांय आवाज़ में……(प्रश्नोत्तरी के मूड में)
उठबू की नाइं?
पानी फेकवाइं?
भाई द ब्रो: (व्यंगात्मक)
अर्पण दीदी का चाहत बाड़ू ,सुबहिये इतिहास बनि जा !।
पूरे मूड के स्ट्रक्चर मत खराब कर।
पप्पा जी:
नमो देवि विश्वव्यापिनी
उठो देवि उठो देवि……
कुछ देर बाद…..
कहां के संस्कार हवे एतना सुत्तल?
माते श्री:
हमार त लाकडाउन के नया नौकरी बा….
(फिर चैता अंदाज)
सूतल अर्पण के जगावें
उनके महतारी।
नाना जी तक सूचना जा चुकी होती है…..
तू इतना सोती है?
नहीं नाना रात को देर से सोये यूं कहिये सुबह सोये।
लेकिन जो भी हो नाना सपोर्ट करते हैं ,डांटना वाटना बस मम्मी के सामने का दिखावा है।
आख़िर नाना किसके हैं….ढनटानानाना।
सबसे हीरो हमार दादा जी जिनको पिताजी बुलाते हैं….
“जाये दs बच्चा हे ,सूते द।
कम से कम नींद त आव तीया।
बुआ से ही तो अमरख फूटता है…..
एक समय के बाद बूआ भतिजियां रणनीतिक सहेली होती हैं। इस लिये माते का यह तीर तरकश में वापस जाना तय ही होता है।
यहां तक को ठीक है ले देके अपने ड्यूटी के अनुसार रसोई के समय तक रसोई में होती हूँ।
और तो और पिछले बार जू मैप पर आशा कार्यकत्रियों का सेशन लेते हुयें आंखे फूली हुयी देखकर मैडम अनोखी (बदला नाम, गेहूंआसागर वाली ) बोल रही थी
‘मैम थोड़ा सोया करिये ‘ ……
अब का बतायें सोते तो हैं लेकिन सोते काम भर का हैं लेकिन चर्चा काम भर से बहुते ज्यादा है।
पड़ोस वाली आंटी जी तो मुहल्ले के ह्वाट्सएप ग्रुप में कह रही थीं….
‘आज की लड़कियों तुम्हारी सास से कैसे निभेगी?
…..
अब ये तो नहीं पता का होगा लेकिन वो हमें मानेंगी ख़ूब।
प्याज काट काट बहुत रोये हैं ,और धुआँ! वो तो पूछो मत, भला कहो ललकी बेनिया का ,जो आंख फूटने से तनिक बचाय लेती है ।
लेकिन आनंदम् तो तबसे प्रबल हुआ है जबसे परसो रात दो बजे(गुड मार्निंग वाले) चूंकि विदेशी मित्रों के कारण )
वेबिनार खत्म होते ही सब लोग लाकडाउन का इंटरेस्टिंग अनुभव साझा कर रहे थे तो हमने बहुत सी बातों के साथ इस अनुभव को साझा किया फिर तो पूछो मत…..
अगली सुबह छ: बजे साउथ वाले नायकर जी फोन करते हैं ,अधखुली नींद में फोन उठाती हूँ।
उधर से आवाज़ आती है….
वणक्कम वणक्कम
अयि गिरिनंदिनि तू अबी तक सोती अये
अमा रे ना रे उट्ट जा ……
माय ब्रेव गैल वेखप वेखप।
किसी तरह सर ,प्रभु ,अंकल जी प्यारे अंकल जी कहके अपने नींद की दुहाई देती हूं तब तक मैडम साबिन का वीडियो काल….
ओह माय डार्लिंग
वी आ यो रियल वेलविश्श
सो ,वी आल मेंबर्स हैव डिसायडेड टू साल्व योर प्राब्लम।
फिर तो बैक टू बैक …..बाप रे।
मोहतरमा मरियम ने तो इतना कह दिया….
‘हमारी खुशनसीबी होगी अगर आप हमें सहरी के लिये जगा दिया करेंगी।’….
अब ये भी निभा रहे हैं । सब आनंद ही आनंद है।
उफ्फ!
रात की नींद गुल्ल स्थिति में हो और सुबह की ख़बर हवा बन जाय तो बैठल धनिया का करें?
ए डेहरी के धान ओ डेहरी धरें।
ख़ैर….
हाल पूछो ना मुझसे दिलों का सनम
अपना अनुभव बताना गज़ब हो गया।

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